Saturday, November 20, 2010

कम्प्यूटर पर जमा धूल से रहें सावधान


लंदन. आपके कीबोर्ड और कम्प्यूटर पर जमा धूल आपके फेफड़ों पर एक अलग ही ढंग से कुप्रभाव डाल सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक कम्प्यूटर से लेकर शैम्पू तक हर रोज प्रयोग होने वाले उत्पादों में मौजूद नन्हे कण फेफड़ों पर अलग ही तरह से प्रभाव डालते हैं।



विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों का कहना है कि सूक्ष्म कणों (नैनो पार्टिकल्स) का प्रयोग करने वाली निर्माण इकाइयों को इनकी जद में आने वाले कर्मचारियों पर पड़ने वाले प्रभावों का पता होना चाहिए। नैनो पार्टिकल्स एक मानव बाल की मोटाई से भी दस हजार गुणा छोटे कण होते हैं।



औद्योगिक इकाइयों में विभिन्न उत्पाद बनाने में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों में मौजूद यह कण बेहद घातक होते हैं। यह कण सांस के दौरान शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। हालांकि इनका उत्पादों में प्रयोग किए जाने के बाद इतना खतरा नहीं होता है। चूहों पर किए अध्ययन के दौरान देखा गया कि चार अलग तरह के सूक्ष्म कणों से फेफड़े क्षतिग्रस्त हुए।

10 साल बाद पकड़ में आई कम्प्यूटर की गलती, लाखों का अंगदान बेकार


लंदन. हमारे शरीर के किसी अंग से दूसरे को लाभ पहुंचे, यह मानते हुए ज्यादातर लोग अंगदान करते हैं। उनके घरवाले भी बाद में समझते हैं कि किसी का तो भला हुआ। ब्रिटेन जैसे अत्याधुनिक तकनीक वाले देश में एक-दो नहीं करीब 8 लाख लोगों का अंगदान लगभग बेकार हो गया।

महज कम्प्यूटर की गलती से। सरकार द्वारा गठित जांच आयोग के निष्कर्ष के अनुसार, खराब सॉफ्टवेयर की वजह से करीब 8 लाख लोगों के अंगदान के आवेदन में गलत अंग दर्ज हो गया। यह गलती एक-दो दिन या महीने नहीं बल्कि पूरे 10 साल तक किसी की पकड़ में नहीं आई। लोगों ने जिस अंग को दान करने की इच्छा जताई, वह कम्प्यूटर में गलत दर्ज हुआ। करीब 25 शवों में से गलत अंग निकाले जा चुके हैं।

कैसे हुआ

लोगों ने ड्राइवर एंड व्हीकल लाइसेंसिंग एजेंसी से लाइसेंस लेते समय आवेदन पत्र में अंगदान संबंधी कॉलम में अपनी इच्छाएं दर्ज की थीं। 1999 में यूके ट्रांसप्लांट ने इनमें से अंगदान संबंधी सूचनाएं ली थीं, लेकिन कम्प्यूटर में दर्ज करने को खराब सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया

चिप्‍स खाने से कैंसर होता है!


सभी स्‍नैक्‍स में चिप्‍स पहले नंबर पर है। क्‍योंकि बच्‍चा हो या बुढ़ा हर कोई चिप्‍स खाना चाहता है। लेकिन वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्‍लूएचओ) ने लोगों को अगाह किया है कि चिप्‍स में एक्रिलामाइड नामक रसायन पाया जाता है। एक्रिलामाइड रसायन को जब उच्‍च ताप पर पकाया जाता है तो यह कैंसर का कारण बन सकता है। चिप्‍स को कुरकुरा बनाने के लिए यह रसायन चिप्‍स में मिलाया जाता है।

न्‍यूजीलैंड के फूड स्‍टैंडर्ड डिपार्टमेंट ने इस संबंध में शोधकर इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे हैं कि कैंसर का एक बड़ा कारण चिप्‍स में एक्रिलामाइड रसायन का होना है। उन्‍होंने दुनिया भर के फूड इंडस्‍ट्री से अनुरोध किया है कि फूड में इस रासायन का इस्‍तेमाल न करें। क्‍योंकि यह भोजन को विषाक्‍त बनाता है।

इस रसायन का प्रभाव गर्मी के स्तर और खाना पकाने में लगने वाला समय पर निर्भर करता है। खाद्य सामग्री में इस रसायन का स्तर कम करने के कदम उठाए जा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों का कहना है कि बीमारी से बचना है तो स्‍नैक्‍स से बचें। क्‍योंकि हर स्‍नैक्‍स में इसे किसी न किसी रूप में मिलाया जाता है। जो स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी गंभीर हालात पैदा कर सकता है।

दुनिया का अब तक का सबसे भीषण परमाणु विस्फोट !





मॉस्को.द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब शीतयुद्ध चरम पर था उस वक़्त विश्व की दो महाशक्तियां रूस और अमेरिका नए- नए हथियारों के परिक्षण में जुटी हुई थीं। मकसद साफ़ था दुनिया के सबसे भीषण हथियार को इजाद करना, इसी क्रम ने रूस ने एक ऐसे बम का अविष्कार किया जिसके बारे में सुन आज भी लोग सिहर उठते हैं।

जी हां रूस ने किया था दुनिया का सबसे विध्वंसक परमाणु बम परिक्षण। बमों के राजा कहे जाने वाले इस जार बम के विस्फोट से 50 मेगाटन टीएनटी के बराबर ऊर्जा निकली थी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हिरोशिमा पर गिराया गए परमाणु बम की क्षमता मात्र 13 किलोटन के बराबर थी। वहीं बिग इवान नामक इस बम की संहारक क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गए बम से करीब चार हजार गुना अधिक थी।

26.3 किलोमीटर तक सब तबाह

जार बम का परीक्षण 30 अक्टूबर 1961 को आर्कटिक द्वीपसमूह के नोवाया जेमलिया नामक स्थान पर किया गया था। बम के फॉयरवाल आकार 4.6 वर्ग किलोमीटर था और यह 26.3 वर्ग किलोमीटर के दायरे में आने वाली हर चीज को तबाह कर वहां एक गड्ढा बना दिया था। परीक्षण स्थल पर एक गहरी गर्त बन गई, जिसे आज भी सेटेलाइट से देखा जा सकता है।

अमेरिका को दिया था करार जवाब

अमेरिका के अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम के परीक्षण के जवाब में रूस ने यह परीक्षण किया था। पहले रूस की योजना 100 मेगाटन क्षमता का परमाणु परीक्षण करने की थी। परंतु तेज हवाओं द्वारा धूल के गुबार को उत्तरी रूस तक पहुंचने की आंशका के कारण विस्फोट की क्षमता घटाकर 50 मेगाटन कर दी गई। परमाणु धूल के आवासीय इलाकों तक पहुंचने के विनाशकारी परिणाम हो सकते थे।

कार जितना बड़ा था यह बम

जिस जार बम का परीक्षण किया गया उसका आकार एक कार जितना था। इसे ले जाने के लिए रूस के सबसे बड़ बमवर्षक विमान में बदलाव किया जाना था। जार बम को धीमी गति से गिरने वाले एक विशेष पैराशूट से गिराए जाने की योजना थी, जिससे विमान को बम विस्फोट से पहले वहां से हटने का पर्याप्त समय मिल जाए।

माउंट एवरेस्ट से करीब सात गुना ऊपर तक उड़ा धुआं

विस्फोट के बाद बम का फॉयरवाल आकाश में विमान की ऊंचाई तक पहुंच गया था। वहीं इससे उठने वाला धुआं माउंट एवरेस्ट से करीब सात गुना ऊपर 60 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा था।

फोटोनिक्स यानी रिसर्च का हाईटेक क्षेत्र


फोटोनिक्स यानी प्रकाश का उपयोग कर सूचना को हासिल करना, आगे पहुंचाना और प्रोसेस करना। यह रिसर्च का हाईटेक क्षेत्र है। इसका विकास ऑप्टिकल टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रॉनिक्स के फ्यूजन से हुआ है। फिजिक्स की इस शाखा में फोटॉन यानी प्रकाश के मूल तत्व का अध्ययन होता है। लेसर गन, ऑप्टिकल फाइबर्स, ऑप्टोमेट्रिक इंस्ट्रुमेंट्स आदि पर रिसर्च भी इसी के तहत होती है।

फोटोनिक्स क्यों? : इस अगली पीढ़ी यानी 21वीं सदी की तकनीक माना जाता है। ठीक उसी तरह जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स को 20वीं सदी की तकनीक माना जाता है। हालांकि फोटोनिक युग की शुरूआत 60 के दशक में लेजर की खोज के साथ ही हो गई थी। इसने 70 के दशक में टेलिकम्युनिकेशन में अपना असर दिखाया। इसके नेटवर्क ऑपरेटर्स ने फाइबर ऑप्टिक्स डाटा ट्रांसमिशन का तरीका अपना लिया। इसीलिए काफी पहले ही गढ़ा जा चुका शब्द फोटोनिक्स आम प्रचलन में आया 80 के दशक में।

यह कहां प्रयोग होता है? : अभी कुछ सालों से टेलिकम्युनिकेशन, कंप्यूटिंग, सुरक्षा और कई अन्य प्रक्रियाओं में फोटोनिक्स का उपयोग आधारभूत तकनीक के रूप में होने लगा है। इससे न सिर्फ काम की स्पीड कई गुना बढ़ जाती है बल्कि वह प्रभावशाली भी हो जाता है। इसका उपयोग बायोटेक्नोलॉजी, माइक्रोबायलॉजी, मेडिसिनल साइंस, सर्जरी और लाइफ साइंस में भी होता है। अब औद्योगिक उत्पादन, माइक्रोबायलॉजी, मेट्रोलॉजी में भी इसका उपयोग होने लगा है।

यह कोर्स कौन करे? : वही, जिसकी गहरी रुचि विज्ञान और इसकी बारीकियों में हो। इसकी गुत्थियां सुलझाने में मजा आता हो। फोटोनिक्स विशेषज्ञ के रूप में आप किसी फर्म में इंजीनियर, वैज्ञानिक और टेक्नीशियन का काम कर सकते हैं। किसी विश्वविद्यालय या शासकीय अनुसंधान विभाग में भी बतौर प्रोफेशनल ऑफीसर कॅरियर बना सकते हैं।

क्या गुण चाहिए? : विज्ञान से गहरा लगाव और फिजिक्स व मैथमेटिक्स में गहरी पकड़ की जरूरत है। इसके साथ चाहिए रचनात्मकता। यही गुण आपको बार-बार कुछ नया करने के लिए प्रेरित करेगा। बढ़िया कम्युनिकेशन स्किल भी काफी जरूरी है।

शैक्षणिक योग्यता : फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स विषय के साथ न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों से बारहवीं पास करने वाले छात्र फोटोनिक्स और ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स में ग्रेजुएट कोर्स करने के पात्र हैं। फिजिक्स, मैथ्स, एप्लाइड फिजिक्स या इलेक्ट्रॉनिक्स में ग्रेजुएट फोटोनिक्स या ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक्स में एमएससी कर सकते हैं। इस क्षेत्र में एमटेक, एमफिल या पीएचडी भी की जा सकती है। इनके लिए योग्यता होगी फिजिक्स या फोटोनिक्स में एमएससी। इसके अतिरिक्त कुछ डिप्लोमा कोर्स भी उपलब्ध हैं। इन्हें करके फोटोनिक्स टेक्नीशियन बना जा सकता है। ये कोर्स सामान्यतया दो साल की अवधि वाले होते हैं।

रोजगार के मौके : फोटोनिक्स में दक्ष लोगों की दुनिया भर में मांग है। इसका विशेषज्ञ इंजीनियर, टेक्नीशियन या टेक्नोलॉजिस्ट के तौर पर काम कर सकता है। सरकारी और औद्योगिक रिसर्च लैब में रिसर्च ऑफीसर बनने के भी खूब मौके हैं। उत्पादन, डिजाइन, सिस्टम्स, एप्लीकेशंस और डेवलपमेंट आदि क्षेत्रों में भी काम केभरपूर मौके हैं।

आकर्षक वेतन : शिक्षा और अनुभव के आधार पर वेतन कम-ज्यादा हो सकता है। शुरूआत में 20000 से 25000 रुपए मासिक वेतन मिलता है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन आदि देशों में फोटोनिक्स रिसर्चर या साइंटिस्ट का सालाना पैकेज 36000 से 1.17 लाख डॉलर यानी 16.50 लाख से 54.50 लाख तक होता है।

प्रमुख इंस्टीटच्यूट्स

>द इंटरनेशनल स्कूल ऑफ फोटोनिक्स कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, कोचीन-22, केरल
फोन: 484-2575396, 2577550, 2575848
वेबसाइट: photonics.cusat.edu, cusat.ac.in

>इंडियन इंस्टीटच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास
डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स, इंडियन इंस्टीटच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास,
चेन्नई- 600036 फोन: 044-22574851
वेबसाइट: physics.iitm.ac.in

>मनीपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन,
मनीपाल-576104, कर्नाटक
फोन: 0820-2571978
वेबसाइट: admissions.manipal.edu

>इंडियन इंस्टीटच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली
डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स,
दिल्ली-110016
फोन: 011-2659 1361
वेबसाइट: web.iitd.ac.in
optoelectronics/index.htm

>द डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी
द ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा एसीटी 0200, ऑस्ट्रेलिया
इंटरनेशनल टी: +61 261255111
वेबसाइट: photonics.anu.edu