Saturday, April 3, 2010

सिकुडता जा रहा है मानव का मस्तिष्क

नयी दिल्ली. मानव का मस्तिष्क सिकुडता जा रहा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मनुष्य की दिमागी क्षमता में कमी हो रही है बल्कि उसका मस्तिष्क सिकुडते कम्प्यूटर की तरह ज्यादा कुशल बनता जा रहा है।

फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने 1868 में पेरिस के दोर्दान में एक गुफा से पांच पुराने कंकालों के बीच मिली बीस हजार साल पुरानी एक खोपडी की अनुकृति का अध्ययन करने के बाद बताया है कि यह वर्तमान

मनुष्य की खोपडी से 20 प्रतिशत तक बडी है।



यह खोपडी क्रो मैगनन मानव प्रजाति से संबंधित थी। यह फ्रांस के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय में रखी हुई है। वैज्ञानिक दल ने इसकी अनुकृति तैयार की है। जिसके बारे में उनका दावा है कि यह आधुनिक युग के प्रारंभिक मानव की खोपडी की अब तक की सर्वश्रेष्ठ अनुकृति है।



वैज्ञानिकों का कहना है कि खोपडी के बडे होने का यह मतलब नहीं है कि मनुष्य के पूर्वज ज्यादा बुद्धिमान थे। अध्ययनों से पता लगा है कि मस्तिष्क के आकार और आर्ईक्यू, सामान्य बुद्धिमत्ता, के बीच बहुत मामूली संबंध होता है। वैज्ञानिकों के इस शोध से मानव विकास के एक महत्वपूर्ण सवाल पर रोशनी पड सकती है कि यदि मनुष्य का मस्तिष्क सिकुडता जा रहा है तो इसकी वजह क्या है।



यह सवाल विशेषज्ञों को परेशान करता रहा है और इस पर उनके बीच मतभेद हैं। समझा जाता है कि यह खोपडी किसी सुगठित अधेड व्यक्ति की है, जो लगभग छह फुट लंबा था। इस खोपडी के बारे में दुनिया भर के वैज्ञानिक पहले से ही जानते हैं लेकिन जल्दी ही यह और प्रसिद्ध हो जाएगी।



जब वाशिंगटन में अमरीका के राष्ट्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय में इसकी अनुकृति को प्रदर्शित किया जाएगा। पेरिस के कुइंज विंग्ट्स अस्पताल में खोपडी के आंतरिक भाग का स्कैन करके इस अनुकृति को तैयार किया गया था ताकि मस्तिष्क से तंत्निका कपाल, न्यूरोक्रैनियम, पर पडे प्रभाव की तस्वीर ली जा सके।

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